रिपोर्ट में दावा, दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में हर माह सात से भी कम बेड्स बढ़ाए
सार
विस्तार- रिपोर्ट का दावा- दिल्ली के अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या में 34 फीसदी
- बढ़ने की बजाय प्रसूति केंद्रों और डिस्पेंसरी की संख्या में आई कमी
- पांच साल में एक बार भी पूरे फंड का नहीं हुआ पूरा इस्तेमाल
दिल्ली सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए अपने कार्यों को दूसरे राज्यों से बेहतर बता रही है। उसका दावा है कि मोहल्ला क्लीनिक पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुआ है और लोगों ने इसकी तारीफ की है। लेकिन भाजपा से जुड़े शोध संस्थान लोक नीति शोध केंद्र (पीपीआरसी) ने बुधवार को एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि स्वास्थ्य पर सरकार का दावा झूठा है क्योंकि दिल्ली सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल में अपने ही वायदे को पूरी तरह नहीं निभाया है।सरकार बनने से पहले उसने दिल्ली के अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या 30,000 तक बढ़ाने का वायदा किया था, लेकिन आरटीआई से प्राप्त जवाब में पता चला है कि सरकार ने इस दौरान केवल 395 नए बेड उपलब्ध कराए हैं। यह आंकड़ा सात बेड प्रति माह का भी नहीं बैठता है।
इतना ही नहीं, सरकार पर सबसे बड़ा आरोप है कि दिल्ली सरकार ने अपनी स्वास्थ्य योजना में भारी मात्रा में धन का आवंटन किया था, लेकिन पांच साल के कार्यकाल में एक वर्ष भी सरकार इस फंड का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाई। ऐसा तब हुआ जबकि अस्पतालों में बेड्स, डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और दवाओं की कमी लगातार बनी रही। पीपीआरसी का दावा है कि ये सभी जानकारियां दिल्ली सरकार में 131 आरटीआई दाखिल करके हासिल की गई हैं।
आम आदमी पार्टी या दिल्ली सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है।
भाजपा उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद विनय सहस्रबुद्धे ने पीपीआरसी की रिपोर्ट 'दिल्लीः ए सिटी ऑन वेंटिलेटर' जारी करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी ने वर्ष 2015 में अपने घोषणा पत्र में दिल्ली को 900 नए प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर देने का वायदा किया था, लेकिन अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में सरकार ने एक भी नया प्राथमिक हेल्थ केयर सेंटर नहीं खोला है।
आम आदमी पार्टी या दिल्ली सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है।
भाजपा उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद विनय सहस्रबुद्धे ने पीपीआरसी की रिपोर्ट 'दिल्लीः ए सिटी ऑन वेंटिलेटर' जारी करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी ने वर्ष 2015 में अपने घोषणा पत्र में दिल्ली को 900 नए प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर देने का वायदा किया था, लेकिन अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में सरकार ने एक भी नया प्राथमिक हेल्थ केयर सेंटर नहीं खोला है।
दिल्ली सरकार के मोहल्ला क्लीनिक को उन्होंने 'हो-हल्ला क्लीनिक' बताया और कहा कि रिपोर्ट को एकत्र करने के समय उनके खोजकर्ताओं ने पाया कि ये केंद्र कई जगहों पर दिन के समय भी नहीं खुले थे। सरकार इन्हें प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर की तरह पेश करने की कोशिश कर रही है, जबकि सच्चाई यह है कि प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर की परिभाषा के मुताबिक इन मोहल्ला क्लीनिकों में कोई सुविधा उपलब्ध नहीं होती।
पीपीआरसी के निदेशक सुमित भसीन ने दावा किया कि आप सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं के कई क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 2014 में कुल 1389 डिस्पेंसरी थीं, लेकिन 2019 में इनकी संख्या गिरकर 1298 (91 की कमी) रह गई हैं। इसी प्रकार प्रसूति केंद्रों की संख्या 265 से घटकर 230 रह गई है।
उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने इस बात पर चिंता व्यक्त की थी कि दिल्ली में आईसीयू बेड्स की संख्या बेहद कम है, जबकि इतनी आबादी के लिहाज से दिल्ली में कई हजार नए बेड्स की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आदर्श स्थिति में प्रति हजार की आबादी पर पांच आईसीयू बेड्स होना चाहिए। दिल्ली में सभी अस्पतालों को मिलाकर यह संख्या 2.99 पर बनी हुई है।
स्टाफ की भारी कमीपीपीआरसी के निदेशक सुमित भसीन ने दावा किया कि आप सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं के कई क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 2014 में कुल 1389 डिस्पेंसरी थीं, लेकिन 2019 में इनकी संख्या गिरकर 1298 (91 की कमी) रह गई हैं। इसी प्रकार प्रसूति केंद्रों की संख्या 265 से घटकर 230 रह गई है।
उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने इस बात पर चिंता व्यक्त की थी कि दिल्ली में आईसीयू बेड्स की संख्या बेहद कम है, जबकि इतनी आबादी के लिहाज से दिल्ली में कई हजार नए बेड्स की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आदर्श स्थिति में प्रति हजार की आबादी पर पांच आईसीयू बेड्स होना चाहिए। दिल्ली में सभी अस्पतालों को मिलाकर यह संख्या 2.99 पर बनी हुई है।
आरटीआई से पता चला है कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है। रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के अस्पतालों में लेक्चरार्स की 66 फीसदी कमी है। इसके अलावा डॉक्टरों की संख्या में 34 फीसदी, पैरा मेडिकल स्टाफ में 29 फीसदी, नर्सों की संख्या में 22 फीसदी की कमी, प्रशासनिक कर्मचारियों की संख्या में 40 फीसदी और अन्य श्रमिकों की संख्या में 38 फीसदी की कमी है।