विवाद बने राफेल सौदे की ये है पूरी कहानी, इसी पर टिकी है 2019 की लड़ाई

विवाद बने राफेल सौदे की ये है पूरी कहानी, इसी पर टिकी है 2019 की लड़ाई

अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत फ्रांसीसी विमान निर्माता और इंटीग्रेटर कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदेगा। इसके बाद सितंबर 2016 में भारत ने 7.87 बिलियन यूरो में 36 नए राफले लड़ाकू जेट खरीदने के लिए फ्रांसीसी सरकार के साथ सीधा सौदा किया। राफेल को 2012 में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और रूस से प्रतिद्वंद्वी प्रस्तावों पर चुना गया था। मूल योजना यह थी कि भारत फ्रांस से 18 ऑफ द शेल्फ जेट खरीदेगा। मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने पिछली यूपीए सरकार की 126 राफेल खरीदने की प्रतिबद्धता से पीछे हटकर कहा कि डबल इंजन वाले विमान बहुत महंगे होंगे और यह समझौता भारत और फ्रांस के बीच लगभग एक दशक लंबी वार्ता के बाद हुआ।
भुगतान पर किया दावा


भारत को पांच साल के समर्थन पैकेज के अलावा, लड़ाकू की उच्च उपलब्धता सुनिश्चित करने के अलावा अनुबंध के हिस्से के रूप में उल्का और स्केलप मिसाइलों जैसे नवीनतम हथियार भी मिलने की बात सामने आई। फिर ये सामने आया कि भारत 15% अग्रिम भुगतान करेगा और तीन साल में डिलीवरी शुरू होगी। राफेल एक डबल इंजन विमान है, जिसे फ्रेंच कंपनी दसॉल्ट एविएशन द्वारा बनाया गया। दसॉल्ट का दावा है कि राफेल के पास एक ही समय में कई कार्रवाइयां करने के लिए 'ओमनीरोल' क्षमता है, जैसे कि बहुत ही कम ऊंचाई, वायु-टू-ग्राउंड, और उसी तरह के दौरान हस्तक्षेप पर एयर-टू-एयर मिसाइलों को फायर करना।


ये बताई सौदे की खासियत

विमान को ऑन-बोर्ड ऑक्सीजन जनरेशन सिस्टम (ओबीजीजीएस) के साथ लगाया जाता है। विमान की लागत पर पहले से ही बहुत हिचकिचाहट थी। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हस्तक्षेप किया और फ्रांस से प्रौद्योगिकी हासिल करने की कोशिश करने और इसे बनाने के बजाय 36 'रेडी-टू-फ्लाई' विमान खरीदने की बात कही। एनडीए सरकार ने दावा किया कि यह सौदा उसने यूपीए से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है और करीब 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। लेकिन 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। भारतीय वायुसेना ने 2011 में तकनीकी और उड़ान का मूल्यांकन किया, इसमें घोषणा की गई कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून अपने मानदंडों को पूरा कर चुके हैं।


ऐसे हुई डील डन!

राफेल लड़ाकू जेट को शुरुआत से ही एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड अटैक के लिए बहु-भूमिका सेनानी के रूप में डिजाइन किया गया है, परमाणु रूप से सक्षम है और इसका पुनर्निर्माण भी किया जा सकता है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस की यात्रा के दौरान प्रस्ताव की घोषणा के करीब डेढ़ साल बाद अंततः सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ एक अंतर सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे 'राफेल सौदा' कहा गया। इसमें भारत ने 36 राफेल डबल-इंजन के लिए 58,000 करोड़ रुपये खर्च दिए। इस लागत का लगभग 15 प्रतिशत अग्रिम भुगतान किया गया। इस समझौते के मुताबिक, भारत को मिसाइल समेत स्पेयर और हथियार भी मिलने की डील हुई।

कांग्रेस हुई आक्रामक

नवंबर 2017 में कांग्रेस ने राफेल विमानों में एक विशाल घोटाले का आरोप लगाया। कांग्रेस ने कहा कि अनुबंध में खरीद प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ, कांग्रेस पार्टी ने रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र इकाई, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में एनएसई 1.06% की लागत पर 'क्रॉनी पूंजीवादी' को बढ़ावा देने के लिए सरकार को दोषी ठहराया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि फ्रांस के साथ हस्ताक्षरित सौदा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की पूर्ति नहीं करता है और इसने राजकोष को नुकसान पहुंचाया है। राफले सौदे का 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज है, जिसका एक बड़ा हिस्सा अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस डिफेंस और संयुक्त कंपनियों को बांटा गया।

गरमाता गया मुद्दा

सौदा घोषित होने के तुरंत बाद, कांग्रेस ने भाजपा पर अरबों डॉलर के सौदे में गैर-पारदर्शिता का आरोप लगाया और इसे 'मेक-इन-इंडिया' कार्यक्रम का 'सबसे बड़ी विफलताओं में से एक' कहा। जनवरी 2016 में, भारत ने फ्रांस के साथ रक्षा सौदे में 36 राफेल जेटों के आदेश की पुष्टि की और इस सौदे के तहत, दसाल्ट और इसके मुख्य सहयोगियों के साथ कुछ तकनीक साझा करने की बात कही। इसी तरह तब से कांग्रेस लगातार इस सौदे पर सरकार से जवाब मांग रही है कि राफेल की सही कीमत बताई जाए, वहीं भाजपा राहुल के बयानों में गड़बड़ियां खोज उन्हें सबूत दिखाने के लिए कह रही है। कांग्रेस बनाम भाजपा की 'राफेल' लड़ाई आने वाले लोकसभा चुनाव का बड़ा हथियार है। इसीलिए कांग्रेस इस मुद्दे की जांच के लिए जेपीसी की मांग पर अड़ी है। देखना है कि मोदी सरकार कैसे विपक्ष को जवाब देती है या फिर वाकई ये मामला जेपीसी की जांच से होकर गुजरेगा। बहरहाल कुछ भी हो आने वाली लड़ाई यानी 2019 के लिए 'राफेल' एक बड़ा मुद्दा तो बन ही गया है।