मानसून में देरी और जलवायु परिवर्तन

मानसून में देरी और जलवायु परिवर्तन

मानसून के पूर्वानुमान को लेकर भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) की भविष्यवाणियां पिछले सालों में सटीक रहती आई हैं। लेकिन इस बार तो मौसम विभाग को अपने ही मौसम संबंधी पूर्वानुमानों को बार-बार बदलना पड़ा है। मौसम विभाग ने पहले 31 मई को व बाद में 3 जून को मानसून के आने की भविष्यवाणी की थी। ये पूर्वानुमान भी सटीक नहीं बैठे। दिल्ली में मानसून के आगमन को लेकर भविष्यवाणी सटीक नहीं होने पर तो मौसम विभाग को सफाई तक देनी पड़ी है। विभाग ने इसे उसके गणितीय मॉडल्स की असामान्य विफलता बताया है। हालांकि अब मौसम विभाग ने मंगलवार को ही बताया कि दक्षिण-पश्चमी मानसून पूरे भारत को कवर कर चुका है।

वैसे तो मौसम का मिजाज भांप लेना आसान नहीं होता लेकिन अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे मौसम विभाग की भविष्यवाणी पर उठते सवालों की पड़ताल भी जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून के आगमन और विदा होने की तिथियों में हो रहे बदलाव की बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन को माना जाना चाहिए। मानसून के पूर्वानुमान से जुड़े समुद्री तापमान के पुराने नियम भी अब उतने प्रभावी साबित नहीं हो पा रहे। यही वजह रही कि मानसून की दिशा व वर्षा के पैटर्न का सटीक अनुमान नहीं लग पाया। यों तो मानसून के आगे बढऩे में देरी के कई कारण होते हैं, लेकिन बंगाल की खाड़ी पर कम दबाव का क्षेत्र विकसित नहीं हो पाना, करीब आधा दर्जन पश्चिमी विक्षोभों का उत्तर भारत से होकर गुजरना और मानसून द्रोणी का नियत स्थान पर स्थापित होना भी बड़ी वजह रहे, जिनके कारण पूर्वी मानसूनी हवाओं को उत्तरी भारत के मैदानी हिस्सों में पहुंचने का मौका ही नहीं मिला। यह सही है कि मौसम विभाग की ओर से दी जाने वाली आंधी, तूफान व अतिवृष्टि जैसी आपदा चेतावनियों के कारण ही राहत और बचाव कार्यों के लिए तत्परता बरती जाती है। मौसम आधारित आकलन एक क्षेत्र अथवा प्रदेश विशेष के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर भी होता आया है। देश भर में कृषि विज्ञान केन्द्र भी बने हुए हैं जहां मौसम वैज्ञानिक तैनात हैं। लेकिन वर्षा की स्थिति को लेकर काश्तकारों को जानकारी या तो पहुंचती ही नहीं या काफी देर से पहुंच पाती है।

मौसम पूर्वानुमानों को लेकर राज्य सरकारों और जिला व खंड स्तर के प्रशासनिक अमले तक को भी सटीक जानकारी समय पर पहुंचे, इसका बंदोबस्त नहीं हो पाया है। मौसम आधारित एडवाइजरी संबंधित तक पहुंचाने का लचर तंत्र बड़ी समस्या है। यही वजह है कि आपदा के वक्त परेशानियों का अम्बार लग जाता है। मौसम विभाग को भी पूर्वानुमान के नए पैटर्न विकसित करने होंगे।