क्या सरकारें असहमति को दबाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग करती हैं?

सहन नहीं असहमति
लोकतंत्र में असहमति की आवाज को दबाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में सरकारें असहमति की आवाज को दबाने का प्रयास करती हैं। ऐसे लोगों का दमन करने के लिए पुलिस का प्रयोग होता है। राजनीतिक आभामंडल इस प्रकार का हो गया है कि सरकारें जो कर रही हैं , वे जनता को स्वीकार करना होगा। असहमति को दबाना सरकार की संवेदनहीनता का परिचायक है। जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर विभिन्न संगठनों, दलो को कमजोर किया जाता है। अनशन, काली पट्टी बांध विरोध करना, धरना, रैली, ज्ञापनों के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली असहमति को दबाया जाना अलोकतांत्रिक है।
-खुशवंत कुमार हिंडोनिया गांधी नगर, चित्तौडग़ढ़
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प्रताडि़त करने के लिए नहीं हैं कानून
कानून सरकार को तानाशाही या प्रताडि़त करने की शक्ति नहीं देता, बल्कि कमजोरियों बुराइयों से मुक्ति दिलाने की शक्ति देता है। कानून मानव सभ्यता के सर्वांगीण विकास और बुराइयों को समाप्त करने के लिए बनते हैं, सद्भाव व समानता लाने के लिए बनते हैं। संविधान निर्माताओं ने संविधान को लचीला बनाया, ताकि समय परिस्थिति के अनुसार बदलाव हो सके। कोई भी सरकार अपने हित साधने के लिए अलोकतांत्रिक कानून नहीं बना सकती।
-अभिषेक पारीक, अजमेर
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लोकतंत्र का मखौल
पिछले कुछ समय से सीबीआइ, ईडी, इनकम टैक्स विभाग, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर उंगलियां उठ रही हैं। कानूनों के दुरुपयोग की बातें सुर्खियां बन रही हैं। यह लोकतंत्र के प्रतिकूल आचरण-व्यवहार की बानगी लगती है। सरकारों द्वारा असहमति को दबाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग करने का सबूत है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। विपक्ष के सुझावों को अनदेखा करना, राष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष की आवाज को दबाना भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का मखौल लगता है।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
लोकतंत्र और असहमति
यह सच है कि अक्सर सरकारें असहमति को दबाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग करती हंै। ऐसा पहले भी होता रहा है। लोकतंत्र में असहमति को दबाया नहीं जाता। असहमति पर गौर किया जाता है।
-सरिता प्रसाद, पटना, बिहार
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जांच एजेंसियों का दुरुपयोग
सरकार चाहे किसी भी दल की हो सत्ताधारी कानूनों, नियमों और विनियमों की खुलकर धज्जियां उड़ाते हैं। यह परंपरा खासकर इंदिरा गांधी के समय आपातकाल से शुरू हुई, जो आज तक निरंतर चलती आ रही है। जांच एजेंसियों का दुरुपयोग सरकारों द्वारा किया जाता है। आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति हमेशा चलती रहती है।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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असहमति को दबाना अनुचित
लोकतंत्र में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बुनियादी मूल्य है तथा संविधान में इसे सर्वोच्चता प्राप्त है। अगर हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं देंगे, तो संविधान के सुचारु रूप से चलने की आशा कैसे कर सकते है? सरकारें असहमति को दबाने के लिए कानूनों का दुरुपायोग करती हैं, जो संवैधानिक मूल्यों का हनन है।
-अजिता शर्मा, उदयपुर
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कानूनों का दुरुपयोग
अपने खिलाफ उठी आवाज या असहमति को सरकारें कानून का दुरुपयोग करके दबाने की कोशिश करती हैं। ये जो होता आया है और अभी जिस हद तक हो रहा है, चिंताजनक है।
-राहुल मुदगल, फतेहाबाद,आगरा
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दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक
जनता जनार्दन की असहमति पर नियंत्रण करने के लिए कानून का सहारा लेना चिंताजनक और दुर्भाग्यपूण है। कानून जनता की भलाई के लिए बनाए जाते हैं, उनके दमन के लिए नहीं ।
-श्रीकृष्ण पचौरी, ग्वालियर, मध्यप्रदेश।
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कानून की पालना जरूरी
जिन लोगों पर कानून का शिकंजा कसता है, वह कई तरह के आरोप भी लगाने लगाता है। लोगों में सह सहज भावना होती है कि खुद को बचाने के लिए दूसरों पर आरोप लगाते रहते हैं। सरकार पर कानून पालना की जिम्मेदारी होती है, लेकिन जिस पर भी कार्रवाई होती है, वही कानून के दुरुपयोग की बात करने लगता है।
-डॉ. माधव सिंह, श्रीमाधोपुर, सीकर
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नहीं चलेगा अधिनायकवाद
अनुचित तरीकों सें लागू हुए कानूनों का विरोध करना विपक्षी दलों और जनता का परम कत्र्तव्य हैं। सत्ताधारियों के तानाशाही रवैए से हमारे संवैधानिक मूल्यों पर आंच पहुंचती है। मनमाने कानूनों से अशांत व हिंसायुक्त माहौल पनपता हैं। अत: यह आवश्यक हैं कि सरकार जनता के विरोध को दबाने का कृत्य न करे। जनता की इच्छा के अनुरूप ही कानून लागू करना सरकार का प्राथमिक कार्य है।
-मनु प्रताप सिंह चींचड़ौली,खेतड़ी
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जन कल्याण के लिए ही बनें कानून
इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में किसी एक विषय पर सभी की सहमति बने यह आवश्यक नहीं है। जैसे उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण बिल का हर तरफ विरोध है, जबकि यह आज देश की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अगर देश के विकास व जन कल्याण के लिए असहमति के बावजूद कोई कानून बनाना पड़े तो वह सही है, किंतु उसका उद्देश्य सरकारों को बचाना न होकर जनकल्याण ही होना चाहिए।
-वंदना शर्मा , कोटा