आत्म-दर्शन : भार नहीं है जिम्मेदारी

आत्म-दर्शन : भार नहीं है जिम्मेदारी

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

बचपन से ही बड़ों ने आपको कर्तव्य की घुट्टी पिलाई होगी। बेटे को पढ़ाना-लिखाना पिता का कर्तव्य है। बूढ़े माता-पिता की देखभाल पुत्र का कर्तव्य है। छात्र को शिक्षा देकर तैयार करना अध्यापक का कर्तव्य है। कानून का पालन करना नागरिकों का कर्तव्य है - यों कर्तव्य की सूची बड़ी लंबी है। कर्तव्य मानकर आप जो भी काम करेंगे, उसमें आप जरूर थकान और तनाव महसूस करेंगे। किसी भी काम को जब तक मन लगाकर खुशी से नहीं करेंगे, तब तक नतीजा यही होगा।

आपका मन जल्दी ऊब जाएगा और तब आप संवेदनहीन यंत्र की तरह काम करेंगे। किसी के कहने पर काम न करें, बल्कि उसे अपनी जिम्मेदारी समझकर इच्छापूर्वक करें, तब झुंझलाहट नहीं होगी। ज्यादातर लोग 'जिम्मेदारी लेने' का मतलब 'कोई भार ढोना' समझते हैं। अगर आप अपने आसपास के माहौल को अपने अनुकूल बनाना चाहते हैं, तो आपको उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार होना चाहिए।