आत्म-दर्शन : चिंतन पर जोर

आत्म-दर्शन : चिंतन पर जोर

इस्लाम इंसानों को सृष्टि और इसमें व्याप्त चीजों पर चिंतन करने और अपने सृष्टा को पहचानने के लिए प्रेरित करता है। कुरआन में कई जगह इंसानों को सोचने और चिंतन करने के लिए प्रेरित किया गया है। कुरआन कहता है- जो खड़े, बैठे और अपने पहलुओं पर लेटे ईश्वर को याद करते हैं और आकाश और धरती की रचना के बारे में सोच-विचार करते हैं। वे पुकार उठते हैं, 'हमारे रब! तूने यह सब व्यर्थ नहीं बनाया है। महान है तू, अत: तू हमें आग की यातना से बचा ले।' (3:191) कुरआन इंसानों को सृष्टि की शुरुआत पर गौर करने पर जोर देता है- 'धरती पर चलो-फिरो और देखो कि किस तरह ईश्वर ने इस सृष्टि की शुरुआत की है।'

(कुरआन-29:20) कुरआन आगे कहता है-'उसकी निशानियों में से आकाश और धरती की पैदाइश और तुम्हारी बोलियों और तुम्हारे रंगों की विविधता भी है।' (कुरआन-29:20) कुरआन चिंतन न करने वाले लोगों के लिए कहता है, 'ईश्वर की नजर में तो बदतरीन जानवर वे गूंगे-बहरे लोग हैं, जो अक्ल से काम नहीं लेते।' (8:22) कुरआन में है कि सृष्टि और उसकी चीजों पर चिंतन करने वाला शख्स ईश्वर की निकटता हासिल करता है- 'जितना आप जानते जाएंगे, उतनी ही ईश्वर से नजदीकी बढ़़ेगी।'